अबुल कलाम आज़ाद (Maulana Abul Kalam Azad) से जुड़े महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्य जैसे उनकी व्यक्तिगत जानकारी, शिक्षा तथा करियर, उपलब्धि तथा सम्मानित पुरस्कार और भी अन्य जानकारियाँ। इस विषय में दिए गए अबुल कलाम आज़ाद से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित किया गया है

अबुल कलाम आज़ाद का संक्षिप्त सामान्य ज्ञान

नाम अबुल कलाम आज़ाद (Maulana Abul Kalam Azad)
जन्म की तारीख 11 नवंबर
जन्म स्थान मक्का, हेजाज़ विलायत, सऊदी अरब
निधन तिथि 22 फरवरी
माता व पिता का नाम शेख आलिया बिन्त मोहम्मद / मुहम्मद खैरुद्दीन बिन अहमद अल हुसैनी
उपलब्धि 1947 – स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षामंत्री
पेशा / देश पुरुष / राजनीतिज्ञ / सऊदी अरब

अबुल कलाम आज़ाद – स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षामंत्री (1947)

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे। वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के वाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक रहे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे।

अबुल कलाम आज़ाद का जन्म

मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को मक्का, उस्मानी साम्राज्य (अब सऊदी अरब) में हुआ था। इनके बचपन का नाम सैय्यद गुलाम मुहियुद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल हुसैनी था| इनके पिता का नाम मौलाना सैय्यद मुहम्मद खैरुद्दीन बिन अहमद अल हुसैनी और इनकी माता शेख आलिया बिन्त मोहम्मद का नाम था।

अबुल कलाम आज़ाद का निधन

मौलाना अबुल कलाम आजाद का निधन 22 फरवरी 1958 (आयु 69 वर्ष) को दिल्ली , भारत में हुआ था।

अबुल कलाम आज़ाद की शिक्षा

आज़ाद शुरू से ही घर-स्कूल में पढ़ते थे और खुद पढ़ाते थे। पहली भाषा के रूप में अरबी में प्रवाह के बाद, आज़ाद ने बंगाली, हिंदुस्तानी, फ़ारसी और अंग्रेजी सहित कई अन्य भाषाओं में महारत हासिल करना शुरू कर दिया। उन्हें अपने परिवार द्वारा नियुक्त ट्यूटरों द्वारा हनफ़ी, मलिकी, शफ़ीई और हनबली फ़िक़, शरियत, गणित, दर्शन, विश्व इतिहास, और विज्ञान के मज़ाहिबों में भी प्रशिक्षित किया गया था। जब वह पंद्रह वर्ष के थे तो अपने समकालीनों से नौ साल आगे, सोलह साल की उम्र में अध्ययन के पारंपरिक पाठ्यक्रम को पूरा किया और उसी उम्र में एक पत्रिका निकाली।

अबुल कलाम आज़ाद का करियर

From left to right, Maulana Abul Kalam Azad (1888 – 1958), President of the Indian National Congress, Asaf Ali, member of the working committee, and Jawaharlal Nehru (1889 – 1964) after a meeting of the Congress working committee to discuss the upcoming British Cabinet Mission to India, March 1946. (Photo by Keystone/Hulton Archive/Getty Images)

सन् 1923 में मौलाना आजाद भारतीय नेशनल काग्रेंस के सबसे युवा अध्यक्ष बने थे। उन्होंने नस्लीय भेदभाव के लिए अंग्रेजों की जमकर आलोचना की और पूरे भारत में आम लोगों की जरूरतों की अनदेखी की। उन्होंने राष्ट्रीय हित से पहले सांप्रदायिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मुस्लिम राजनेताओं की आलोचना की और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के सांप्रदायिक अलगाववाद को खारिज कर दिया। लेकिन उनके विचार तब काफी बदल गए जब वह इराक में नस्लीय उन्मुख सुन्नी क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं से मिले और उनके उत्कट साम्राज्यवाद और राष्ट्रवाद से प्रभावित थे। आज़ाद ने राजनीति में उस समय प्रवेश किया जब ब्रिटिश शासन ने 1905 में धार्मिक आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया था। मुस्लिम मध्यम वर्ग ने इस विभाजन को समर्थन दिया किन्तु आज़ाद इस विभाजन के विरोध में थे। आज़ाद ने स्वतत्रता आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया। वह गुप्त सभाओं और क्रांतिकारी संगठन में शामिल हो गए। तत्पश्चात् आज़ाद अरबिंद घोष और “”श्यामसुंदर चक्रवर्ती”” के संपर्क में आए, और वे अखण्ड भारत के निर्माण में लग गये। 1905 में महान् क्रांतिकारी अरविन्द घोष से उनकी मुलाकात हुई थी। मुसलमानों के कुछ गुप्त मंडलों की भी उन्होंने स्थापना की थी।

मौलाना को लगा कि कुछ ऐसे कारण है जिनको लेकर सन् 1857 की आज़ादी की लड़ाई के बाद मुसलमान बहुत सी बातों में अपने दूसरे देशवासियों से पीछे रह गए हैं। अपने इस संदेश को फैलाने के लिए सन् 1912 में उन्होंने अपना प्रसिद्ध साप्ताहिक अखबार “”अल-हिलाल”” आरम्भ किया था। इस अख़बार में उन्होंने अपने प्रगतिशील विचार, कुशल तर्क और इस्लामी जनश्रुतियाँ और इतिहास के प्रति अपने दृष्टिकोण को प्रकाशित किया। यह अख़बार भारत और विदेशों में इतनी जल्दी प्रसिद्ध हो गया कि आज यह बात एक चमत्कार ही लगती है। कुछ ही दिनों में “”अल-हिलाल”” की 26,000 प्रतियाँ बिकने लगीं। लोग इकट्ठे होकर उस अख़बार के हर शब्द को ऐसे पढ़ते या सुनते जैसे वह स्कूल में पढ़ाया जाने वाला कोई पाठ हो। कुछ ही दिनों में उस अख़बार ने न सिर्फ़ मुसलमानों में बल्कि उस समय के उर्दू पढ़ने वाले बहुत से लोगों में जागृति की एक लहर उत्पन्न कर दी। आख़िर सरकार ने “”अल-हिलाल”” की 2,000 रुपये और 10,000 रुपये की जमानतें ज़ब्त कर लीं और मौलाना आज़ाद को सरकार के ख़िलाफ़ लिखने के जुर्म में बंगाल से बाहर भेज दिया।

जनवरी सन् 1920 में रिहा होने के बाद उनकी दिल्ली में हकीम अजमल ख़ाँ के घर गांधी जी से भेंट हुई। जेल से निकलने के बाद वे जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोधी नेताओं में से एक थे। इसके अलावा वे खिलाफ़त आन्दोलन के भी प्रमुख थे। खिलाफ़त तुर्की के उस्मानी साम्राज्य की प्रथम विश्वयुद्ध में हारने पर उनपर लगाए हर्जाने का विरोध करता था। उस समय ऑटोमन (उस्मानी तुर्क) मक्का पर काबिज़ थे और इस्लाम के खलीफ़ा वही थे। इसके कारण विश्वभर के मुस्लिमों में रोष था और भारत में यह खिलाफ़त आंन्दोलन के रूप में उभरा जिसमें उस्मानों को हराने वाले मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, फ्रांस, इटली) के साम्राज्य का विरोध हुआ था। भारत की आजादी के बाद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया। मौलाना आज़ाद को ही “”भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान”” अर्थात “”आई.आई.टी.”” और “”विश्वविद्यालय अनुदान आयोग”” की स्थापना का श्रेय है। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की। जिसमे संगीत नाटक अकादमी (1953), साहित्य अकादमी (1954), ललितकला अकादमी (1954) थे केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्यों दोनों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की।

अबुल कलाम आज़ाद के पुरस्कार और सम्मान

वर्ष 1992 में मरणोपरान्त मौलाना अबुल कलाम आजाद को देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न”” से सम्मानित किया गया। मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती (11 नवम्बर) प्रत्येक वर्ष देश भर में ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस”” के रुप में मनाई जाती है। मौलाना अबुल कलाम आजाद की मृत्यु के समय उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी और न ही कोई बैंक खाता था। अबुल कलाम आजाद का मकबरा दिल्ली में जामा मस्जिद के बगल में स्थित है। हाल के वर्षों में मकबरे के खराब रखरखाव को लेकर भारत में कई लोगों द्वारा बड़ी चिंता व्यक्त की गई है। 16 नवंबर 2005 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि नई दिल्ली में मौलाना आज़ाद की कब्र को पुनर्निर्मित किया जाए और एक प्रमुख राष्ट्रीय स्मारक के रूप में संरक्षित किया जाए। 1982 की जीवनी फिल्म, गांधी में रिचर्ड एटनबरो द्वारा निर्देशित, आजाद को अभिनेता वीरेंद्र राजदान द्वारा चित्रित किया गया था।
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